हाई कोर्ट ने आराध्या बच्चन पर छपी फेक न्यूज को हटाने का आदेश दिया.....
दिल्ली हाई कोर्ट ने अमिताभ बच्चन की पोती आराध्या बच्चन की सेहत को लेकर जारी फेक न्यूज पर सख्ती दिखाई है। हाई कोर्ट ने बच्चन परिवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यू-ट्यूब से तत्काल आपत्तिजनक जानकारी हटाने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गूगल पर भी सख्ती दिखाई और पूछा कि क्या इस कंपनी द्वारा देश के आईटी नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं।
जानिए क्या है आराध्या बच्चन का फेक न्यूज मामला
आराध्या बच्चन की तबीयत को लेकर यूट्यूब टैब्लाॅइड ने अफवाहें उड़ाईं, जिसे देख परिवार गुस्सा हुआ और उन्होंने सख्त कदम उठाया है। इस बारे में बच्चन परिवार की ओर से कहा गया है कि आराध्या के स्वास्थ्य को लेकर कुछ फेक जानकारी एक यूट्यूब चैनल और वेबसाइट पर लगातार दिखाई जाती है, जो कि काफी आपत्तिजनक है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि वादी (आराध्या) को 11 साल की छोटी उम्र में ही उन बातों से गुजरना पड़ता है जिनका उल्लेख मुकदमे में किया गया है। कोर्ट ने कहा, गूगल Inc अपनी नीति को विस्तारित करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह आईटी नियम 2021 के नियम 3(1)(b)के अनुपालन में है। अदालत ने पूछा कि आईटी नियमों में संशोधन के बाद गूगल ने अपनी नीति में कोई बदलाव किया है या नहीं और क्या यह आईटी नियमों में लाए गए संशोधनों के अनुरूप है।
कोर्ट ने कही ये बातें
इसके आगे कोर्ट ने कहा कि वादी की शिकायत यह है कि वह मुंबई के एक स्कूल में पढ़ने वाली एक स्वस्थ स्कूली बच्ची हैं, लेकिन कुछ दुष्ट लोग केवल प्रचार के लिए कुछ समय से यूट्यूब पर यह कहते हुए वीडियो प्रसारित कर रहे हैं कि वादी गंभीर रूप से बीमार है। यहां तक कि एक वीडियो में तो यह भी दावा किया गया कि वह अब नहीं रही। जाहिर तौर पर मॉर्फ्ड तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया गया है। इस तरह के वीडियो वादी के निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और आइटी (मध्यस्थ दिशानिर्देश डिजिटल मीडिया नैतिकता) नियमों का उल्लंघन है।
कोर्ट ने कहा कि इस अदालत ने मामले से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो क्लिप देखी हैं और यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की भ्रामक जानकारी मशहूर हस्तियों के लिए प्रसारित की जाती है, लेकिन जब ऐसी जानकारी किसी बच्चे के संबंध में प्रसारित की जाती है तो यह ऐसा करने वालों की विकृति को दर्शाता है। सेलिब्रिटी से लेकर सामान्य बच्चे को सम्मान पाने का अधिकार है, विशेष रूप से बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में भ्रामक जानकारी का प्रसार कानून में पूरी तरह से असहनीय है।