किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह बेहद परेशान हो जाता है. समस्याओं से घिरने पर वह कई प्रकार के उपाय करता है लेकिन उनसे निकल नहीं पाता है. ज्योतिष शास्त्र में इसे शनि, राहु और केतु के प्रभाव से जोड़कर देखा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि, जब ये तीनों किसी व्यक्ति के सिर पर सवार होते हैं तो उसके जीवन में तबाही मचती है. 

शनि के गोचर का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में शनि को सबसे क्रूर ग्रह माना गया है और कहा जाता है कि, शनि जब किसी व्यक्ति की जन्म राशि से तृतीय, षष्ठ, एकादश स्थान पर भ्रमण करते हैं, तो यह शुभ माना जाता है और जब तक शनि शुभ स्थानों पर रहते हैं तब तक व्यक्ति को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. इनमें गाड़ी, बंगला, प्रॉपर्टी, संपत्ति आदि शामिल हैं.
वहीं यदि शनि का गोचर जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम अथवा द्वादश, इन स्थानों में हो तो यह अशुभ परिणाम देता है. ऐसे समय में व्यक्ति को लगातार परेशानियों को सामना करना पड़ता है लेकिन, व्यक्ति के जीवन में कष्ट उस समय और बढ़ जाते हैं जब कुण्डली में चलने वाली दशा भी विपरीत हो.यहां जानने वाली बात य​ह कि, यदि व्यक्ति की जन्म कुण्डली में शुभ ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा चल रही हो तो शनि के अशुभ गोचर का प्रभाव भी तीव्र नहीं होता.

राहु-केतु के गोचर का प्रभाव
ज्‍योतिष शास्त्र में केतु को पाप ग्रह माना जाता है. जबकि, राहु को अशुभ और छाया ग्रह की संज्ञा दी गई है. गोचर में राहु के प्रभाव को शनि और केतु के प्रभाव को मंगल की तरह बताया गया है. शनि गोचर में तृतीय, षष्ठ, एकादश स्थानों पर शुभ माना गया है और इस स्थिति में राहु भी व्यक्ति को शुभ फल प्रदान करता है. जबकि, राहु का गोचर जब शुभ स्थानों पर हो तो यह व्यक्ति को लाभांवित करने का काम भी करता है लेकिन, अशुभ स्थानों पर हो तो यह व्यक्ति की बुद्धि को हर लेता है और यह उसे परेशानियों में डाल देता है.